खिंच गई जब से दिवारें आँगनों के बीच में

खिंच गई जब से दिवारें आँगनों के बीच में हम निपट नंगे हुए अपने जनों के बीच में   ख़ून देकर भी उसे यदि कर सको कर लो हरा वो जो रेगिस्तान है दो गुलशनों के बीच में   आपने जिनको पुराना जान कर मौला दिया चूड़ियाँ महफ़ूज़ थीं उन कंगनों के बीच में   … Continue reading खिंच गई जब से दिवारें आँगनों के बीच में